4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस पर बबलू दुबे मेजर ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम से पाढर चिकित्सालय तक पदयात्रा करेंगे। यह पदयात्रा का कई समांतर पहलूओं को अपनी पीट पर लाद कर चलेगी। मेजर ध्यानचंद की मृत्यु भी कैंसर से हुई थी, उन्हें लीवर था। ज्ञातव्य है कि ध्यानचंद अपना इलाज करवाने जनरल बोगी में बैठ कर दिल्ली गए थे और वहां मृत्यु उपरांत उनके शरीर को हेलीकाप्टर द्वारा वापस भेजा गया था। शायद सरकार भी इस जादुगर को यह सुविधा देने के लिए उनकी मौत का रास्ता देख रही थी। ध्यानचंद को अपना रोल मॉडल मानने वाले बबलू दुबे भी कैंसर को चित कर आज दांडी यात्रा नुमा पदयात्रा कर रहें हैं। परन्तु बबलू दुबे ने अपनी पदयात्रा के आमंत्रण के ब्रोशर में एक बात शायद झूठ लिखी है कि ‘मैने आपके सहयोग और आर्शीवाद से अपनी कैंसर की जंग को जीता हैÓ ।
कैंसर पर जंग बबलू दुबे ने सिर्फ अपने चट्टान जैसे आत्मबल के दम पर जीता है। वरना बायप्सी रिपोर्ट में कैंसर का पता चलते ही मरीज के साथ पूरा परिवार तिल तिल मरता है और समाज भी उसे सहानभूती की नजर से देखने लगता है। ऐसे में बबलू ना सिर्फ कैंसर से उभरे बल्कि बैतूल में हॉकी को स्थापित करने में सराहनीय भूमिका का निर्वहन किया। बबलू बताते हैं कि उन्होने सोचा की कैंसर पीडि़तों को आर्थिक मदद की जाए उसके लिए उन्होने इस विषय में राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के पूरे नियम कायदों को समझा और कैंसर पीडि़तों की मदद करने लगे। परन्तु बबलू को सबसे बड़ा धक्का तब लगा जब उन्हें पता चला कि जिस कैंसर पीडि़त व्यक्ति के लिए जो बीमारी सहायता योजना से 75 हजार रूपए लाए हैं उसकी मृत्यु ठीक उसी दिन हो गई है।
बबलू ने इसके बाद कैंसर के खिलाफ अपनी जंग का गेयर बदला और ठान लिया कि वे अब कुछ ऐसी मूहिम चलाएंगे जिससे उनके बैतूल जिले में किसी को कैंसर ही ना हो। इसके लिए उन्होने इसके प्रति लोगों को जागरूक करने का निश्चय किया। उनका अगला पढ़ाव स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशाला के माध्यम से जागरूकता पैदा करना है। यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बबलू की रीढ़ की हड्डी कृत्रिम है। जिस कारण उनके शरीर में हल्का से ढ़ेड़ापन आ गया है, याद रहे गन्ना सीधा हो या ढ़ेड़ा उसके रस में मिठास वही बनी रहती है। गोया कि बबलू के यह भागीरथी प्रयास और जज्बा उन्हें सुपरमैन बनाता है। आम अवधारणा है कि जरा सा सिर दर्द में भी इंसान को किसी से बात करने की इच्छा नहीं होती है ऐसे में इतनी शल्य चिकित्सा और कैंसर जैसी बीमारी के साथ भी बबलू ने अपनी जिंदादिली और सामाजिक कतव्र्य का निर्वहन बरकरार रखा। ध्यानचंद को अपना रोल मॉडल मानने वाले इस सुपरमैन को अब जिले के कई युवा रॉल मॉडल मानने लगे हैं। क्योंकि इनका मिडास टच ऐसा है कि इनके संपर्क में आते ही सामने वाले व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण स्वत: होने लगता है।