बैतूल। देश और दुनियाभर के कई देशों में इस वर्ष 24वां विश्व आदिवासी दिवस पूरे विश्वभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। आज ही के दिन संयुक्त राष्ट्रसंघ ने दुनियाभर के आदिवासी समाज के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए प्रस्ताव पारित किया था। जिसके बाद से यह दिवस दुनियाभर में यह दिवस मनाया जाता है। इस बार भी विगत वर्ष की तरह आदिवासी दिवस बड़े हर्षोउल्लास और धूमधाम के मनाया जाएगा,यह जानकारी बैतूल के युवा आदिवासी समाजसेवी मनीष कुमार धुर्वे ने दी। मनीष कुमार धुर्वे ने सभी मातृ शक्ति,पितृ शक्ति व आदिवासियों भाइयों से निवेदन किया की आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल मुख्यालय के आदिवासी मंगल भवन गंज रोड पर सुबह 9 बजे से भारी संख्या में सम्मिलित होकर जिला स्तरीय विश्व आदिवासी दिवस को संपन्न कराने में सहयोग करें।
श्री धुर्वे ने बताया की तैतीस सागर विलय होने के पश्चात से ही गोंडवाना भू-भाग विभिन्न देशो में विभाजित हो गया,मगर इस सरजमी की संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए आदिवासी संगठन सैकड़ो वर्षों से विभिन्न क्षेत्रों और देशों में तत्पर है। यूएनओ ने अपने गठन के पचास साल बाद महसूस किया कि 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज अपनी उपेक्षा,गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव,बेरोजगारी एवं बन्धुआ व बाल मजदूरी जैसी समस्याओ से ग्रसित है। अत: 1993 में यूएनडब्लूजीईपी कार्यदल के 11 वेंअधिवेशन में आदिवासी अधिकार घोषणा प्रारुप को मान्यता मिलने पर 1993 को आदिवासी वर्ष व 9 अगस्त को आदिवासी दिवस घोषित किया गया। अत: आदिवासियों को अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओ का निराकरण, भाषा संस्कृति, इतिहास के संरक्षण के लिए संयुक्त राट्र संघ की महासभा द्वारा 9 अगस्त 1994 में जेनेवा शहर में विश्व के आदिवासी प्रतिनिधियों का विशाल एवं विश्व का प्रथम अन्तर्राट्रीय आदिवासी दिवस सम्मेलन आयोजित किया। आदिवासियो की संस्कृति,भाषा, आदिवासियों के मूलभूत हक का सभी ने एक मत से स्वीकार किया और आदिवासियों के सभी हक बरकरार है इस बात की पुष्ठी कर दी गई और विश्व राष्ट्र समूह ने ‘हम आपके साथ हैÓ यह वचन आदिवासियोँ को दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में व्यापक चर्चा के बाद से दुनियाभर के दोशों को आदिवासी दिवस मनाने का निर्देश दिया गया था। श्री धुर्वे ने कहा कि इस विचारधारा को हम युवाओं को अपने मन पर पत्थर की लकीर की तरह समाहित करना होगा,तभी समाज का उत्थान संभव है अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी भी लड़ती रहेंगी, मरते रहेंगी परंतु दुर्दशा से छुटकारा नहीं मिल पायेगा।